बिरसा आवाहन गीत

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विदर्भ वतन न्यूज पोर्टल नागपूर

मेरे बिरसा

मेरे बिरसा रे, तू आ जा ।
तेरे भाईयोंकी दशा दैन्यावस्था मे ।
भुखा पेट, पहनने को फटा कपडा रे ।
बच्चे, बूढे, बहनोंपे अत्याचार रे ।
ऐसे हालातोंमें तू चूप कैसा रे ?
मेरे बिरसा रे, तू आ जा ।

कुपोषण बच्चे शिकार हों रहें ।
सरकारी पैसा अधिकारी खा रहे ।
आरक्षणोंपे पराए लोग आ रहे ।
भोलीभाली जनता पर जुल्म हों रहें ।
ना कोई वाली है, ना पूछनेवाला रे ।
ऐसे हालातोंमें तू चूप कैसा रे ?
मेरे बिरसा रे, तू आ जा ।

।।१।।

खुदको नेता कहनेवाले झगड रहे हैं ।
अपने भाईयोंको लताड रहें हैं ।
सामाजिक विचारोंकी सोच नहीं रे ।
आदीवासी शक्ती सब बिखर गई रे ।
ना कोई वाली है, ना पूछने वाला रे ।
ऐसे हालातोंमें तू चूप कैसा रे ?
मेरे बिरसा रे, तू आ जा ।

।।२।।

दृढ निश्चय करके सबको जगाना है ।
मूलनिवासियों की ताकत बनाना है ।
सच्ची लगन, मेहनत से काम करना है ।
जातिभेद मिटाके मंजिल को पाना हैं ।
ना कोई वाली है, ना पूछने वाला रे  ।  
ऐसे हालातोंमें तू चूप कैसा रे?

मेरे बिरसा रे, तू आ जा ।

गीतकार: तिरु, अरविंद मसराम, नागपूर
(मोब – ९९२१४१९२२५)